जीवन बीमा क्यों ज़रूरी है आपके लिए?


हमें लगता है कि बीमा हमारे लिए ज़रूरी नहीं है। हम अपनी गाडी , बाइक का बीमा तो करवा लेते हैं, पर अपनी ज़िंदगी का बीमा करवाना ज़रूरी नहीं समझते। गाडी और बाइक का बीमा भी वैसे सिर्फ पुलिस के डर से ही करवाते हैं, कि कहीं चालान ना हो जाये। फिर जब कभी दुर्घंट्ना हो जाती है तो वही डर से करवाया हुआ बीमा ही काम आता है। अगर ये डर न होता तो दुर्घटना में हुए नुकसान कि भरपाई भी हमें खुद ही करनी पड़ती। पर हम ये भूल जाते हैं कि दुर्घटना के समय हम भी उस वाहन में थे, जिसका नुकसान हुआ। हमारा भी नुकसान हो सकता था। हमारी भी जान जा सकती थी। बाइक का बीमा था (डर कि वजह से) तो उसकी भरपाई हो जाएगी। अगर हमें कुछ हो जाता तो उसकी भरपाई कौन करता। हमने तो अपनी ज़िंदगी का बीमा ही नहीं करवाया, ज़रूरी ही नहीं समझा। हमें लगता है कि हम तो शक्तिमान हैं, हमारा तो बाल भी बांका नहीं हो सकता। हम ये भी नहीं सोचते कि हमें कुछ हो गया तो हमारे परिवार कि देखभाल कौन करेगा? कहां से उनकी ज़रूरतों की पूर्ती होगी? ऐसे ही एक घटना मेरे गांव में हुई थी। मैंने एक लड़के जिसका नाम सोनू था, उसको जीवन बीमा के बारे में बताया तो उसने कहा कि आप मेरा बीमा कर दो।  मैंने उसका फॉर्म भरा और दफ्तर में जमा करवा दिया। कुछ दिन बाद उसकी पालिसी बन कर आ गयी। जब मैं उस पालिसी को उसे देने उसके घर गया तो उसके पिता जी कीडू ने कहा कि हमें तो ज़रूरत ही नहीं है इसकी। आप इसे ले जाओ, हमें नहीं चाहिए। मैंने उसे समझाया कि ये आपके बेटे और आपके पोते कि पालिसी है। बहुत अच्छी पालिसी है। मैंने उसे उसके सारे फायदों के बारे में भी बताया। जीवन बीमा के बारे में कहा कि अगर भगवन ना करे कि सोनू को कुछ हो जाये तो उसके परिवार कि ज़रूरतों को इस के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। उसने कहा कि ऐसे किसी को कुछ नहीं होता। ऐसे ही कहने की बातें होती है। मैं 10 पढ़ा लिखा हु, मुझे सब पता है। तो मैंने उसके साथ ज्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा। और पालिसी को लेकर वापस आ गया। उसने उस पालिसी का पहला प्रीमियम भी नहीं दिया था। वो भी मैंने अपने पास से ही लगाया था। 6 महीने की पालिसी थी तो मैंने उसे रख लिया। 6 महीने बाद वो पालिसी बंद हो गयी। और उसके कोई एक या डेढ़ साल बाद सोनू का एक्सीडेंट हो गया। और उस दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी। मुझे उसके पिता जी के वो शब्द याद आये जब उसने कहा था कि ऐसे किसी को कुछ नहीं हो सकता। मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया कि उस समय मैं उसको दो रैप्टेमार कर भी उसे पालिसी दे देता तो शायद आज उसकी बेटी कि ज़िंदगी में इतना अँधेरा ना होता, जितना अब सोनू के जाने से हो गया। समय कि चाल को कोई समझ नहीं सकता। होनी को कोई टाल नहीं सकता पर उसकी ज़िंदगी में उदासी, अंधेरेपन, और आने वाली मुश्किलों को तो काम कर ही सकते हैं। यही काम lic की पालिसी ने करना था। सोनू अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था। आज उसकी पत्नी भी अपने घर चली गयी है। शायद उसके माँ बाप ने उसकी शादी कहीं और कर दी हो पर मेरे तो उस बच्ची के बारे में सोच के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जो अभी 1  साल की ही थी। जब उसके सर से उसके बाप का साया उठ गया। माँ ने कहीं और शादी कर ली। उस बच्ची का क्या होगा।
मेरा इस कहानी को बताने का तातपर्य सिर्फ इतना सा ही है की समय अपनी गति से चल रहा है। उसे कोई नहीं समझ स्का और न ही उसे कोई बदल सकता है। हम जितना मर्ज़ी बोलें कि ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा हो सकता है। पर होना वही है जो हमारी किस्मत में लिखा है। क्या हमारी ज़िंदगी कार, बाइक से भी गयी गुजरी है। जिसकी हमें कदर ही नहीं है। अब भी जब कोई बोलता है कि हमें जीवन बीमा की ज़रूरत नहीं है। मुझे सोनू की कहानी ही याद आती है। दिल तो करता है कि इसको दो चांटे लगाऊ और पूछूं  कि अपने बच्चों के बारे में भी यही राय है तेरी। क्यों वो अपनी बच्चों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

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